(Video) Daily Current Affairs for UPSC, IAS, UPPSC/UPPCS, BPSC, MPSC, RPSC & All State PSC/PCS Exams - 16 January 2021
स्वच्छ जल मूल अधिकार
- पृथ्वी की सतह पर जो पानी है उसमें से 97 प्रतिशत पानी सागरों एवं महासागरों में है जो खारा है, जिससे पीने या घरेलू एवं कृषि कार्यों में उपयोग नहीं किया जा सकता है। केवल 3 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है जिसमें से केवल 0.6 प्रतिशत पानी नदियों, झीलों और तालाबों में है, जिसका उपयोग किया जा सकता है।
- भारत में वैश्विक ताजे स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत मौजूद है, जिससे वैश्विक जनसंख्या के 18 प्रतिशत (भारत आबादी) हिस्से को जल उपलब्ध कराना होता है।
- वर्ष 2017 में केंद्रीय जल संसाधन मंत्रलय द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किये गये आंकड़ों के अनुसार देश में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल की उपलब्धता वर्ष 2001 (1820 घनमीटर) से घटकर वर्ष 2011 में 1545 घनमीटर तक पहुँच गई थी।
- नवीनतम आंकड़ों के अनुसार प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल की उपलब्धता वर्ष 2025 तक घटकर 1341 घनमीटर और वर्ष 2050 तक 1140 घनमीटर तक पहुँच सकती है।
- जल और स्वच्छता पर काम करने वाली संस्था ‘वाटरऐड’ (WaterAid) द्वारा जारी वर्ष 2018 की वार्षिक रिपोर्ट में भारत को विश्व में शीर्ष उन 10 देशों की सूची में रखा गया था जिनमें लोगों के घरों के नजदीक स्वच्छ जल की उपलब्धता सबसे कम है।
- संयुक्त राष्ट्र ने सुरक्षित पीने के पानी को एक मौलिक अधिकार और जीवनस्तर को सुधाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण और अति आवश्यक लक्ष्य निर्धारित किया है। संयुक्त राष्ट्र ने सभी तक स्वच्छ जल पहुँचाने का लक्ष्य 2030 तक रखा है जिसे प्राप्त करने के लिए सभी देशों से अनुरोध किया गया है।
- भारत सरकार भी संयुक्त राष्ट्र के 2030 तक के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयासरत है, जिसके लिए राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, स्वजल योजना, और 2024 तक देश के हर घर तक ‘नल से जल’ पहुँचाने की योजना पर काम कर रही है।
- भारतीय संविधान में स्वच्छ पेयजल को प्राथमिकता प्रदान की गई है। नीति-निदेशक तत्त्व के अनुच्छेद-47 के तहत स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाना राज्यों को कर्तव्य बताया गया है।
- स्वच्छ जल किसी भी व्यक्ति के लिए अति महत्त्वपूर्ण है इसी के कारण इसे मौलिक अधिकार के रूप में अब स्थान प्राप्त है।
- आंध्र प्रदेश पोल्युशन बोर्ड बनाम प्रोफेसर एम- वीनाय डू केस में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्धारित किया कि पीने का पानी जीवन का एक मौलिक अधिकार है।
- दो दिन पहले पुनः सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि स्वच्छ जल नागरिकों का मूल अधिकार है और इसे कल्याणकारी राज्य के द्वारा उपलब्ध करवाया जाना आवश्यक है।
- कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त जल का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के दायरे में संरक्षित किया जायेगा।
- दिल्ली जल बोर्ड द्वारा दायर याचिका में पड़ोसी राज्य हरियाणा द्वारा यमुना में छोड़े जाने वाले पानी को प्रदूषक बताया गया था। बोर्ड का कहना था कि पानी में मौजूद अमोनिया क्लोरीन के साथ मिलने पर कार्सिनोजेनिक हो जाता है, जिससे केंसर का खतरा बढ़ जाता है।
- कोर्ट ने विषय की गंभीरता पर चिंता प्रकट की और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्र सरकार के अलावा पांच राज्य सरकारों (दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश) को नोटिस जारी किया और उनसे इस मामले में जवाब मांगा।
- अदालत ने यमुना के बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यमुना नदी के किनारे देशभर की उन सभी नगरपालिकाओं की पहचान करने के लिए कहा है जिन्होंने उपचार संयंत्र स्थापित नहीं किये हैं, जिससे प्रदूषित जल यमुना में जाता है।
- भारतीय संविधान में जल को राज्य सूची में 17वीं प्रविष्टि के रूप में शामिल किया गया हैं इसके अनुसार जल आपूर्ति, जलनिकासी और तटबंध, जल संग्रहण और जलशक्ति शामिल है।
- संविधान के अनुच्छेद-243W के तहत नगरपालिकाओं और स्थानीय निकायों को भी सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता सर्वेक्षण और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का जिक्र किया है, जिसके अंतर्गत जलापूर्ति भी शामिल है।
- कुछ समय पहले सरकार द्वारा दिये गये आंकड़ों के अनुसार भारत के 16-78 करोड़ घरों में से केवल 16 प्रतिशत घरों तक पाइप से पानी पहुँच है।
- 22 फीसदी ग्रामीण परिवारों को पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर और इससे अधिक दूर चलना पड़ता है।
- बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों में जलापूर्ति की स्थिति बेहद गंभीर है।
- सिक्किम एकमात्र राज्य है जहां लगभग सभी घरों में नलों के माध्यम से जलापूर्ति की जाती है।
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 60 करोड़ भारतीय गंभीरतम जल संकट का सामना कर रहे हैं। लगभग 2 लाख लोग हर साल अस्वच्छ पानी वजह से मृत्यु का शिकार हो जाते है।
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक देश में पानी की मांग दोगुनी हो जायेगी जिसके कारण करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट उत्पन्न हो सकता है और दिल्ली, बंगलुरू, चेन्नई, हैदराबाद समेत देश के 21 शहर प्रमुख रूप से प्रभावित होंगे।
- वैश्विक स्तर पर भारत जल प्रदूषित के मामले में उच्चस्थान रखता है। 70 प्रतिशत जलप्रदूषण के साथ भारत का जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें पायदान पर है।
सरकारी प्रयास-
- राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) के अंतर्गत सुरक्षित पानी हर समय और सभी स्थितियों में सुलभ होना चाहिए। इस योजना का उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण व्यत्तिफ़ को 2022 तक 70 लीटर स्वच्छ जल प्रति व्यत्तिफ़ प्रतिदिन उनके घरेलू परिसर के भीतर या 50 मीटर तक की दूरी तक प्रदान करना है।
- वर्ष 2018 में शुरू हुए ‘स्वजल योजना’ के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में पाइपलाइन से जल आपूर्ति बढ़ाकर, देश के ग्रामीण क्षेत्रें में लोगों को सुरक्षित पीने के पानी की सुलभ सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। इस योजना को 28 राज्यों के उन 117 जिलों तक विस्तारित किया गया जिसमें राष्ट्रीय औसत के 44 प्रतिशत की तुलना में केवल 25 प्रतिशत पाइप्ड जलापूर्ति वाले आवास हैं।
- भारत सरकार के विभिन्न उपक्रमों द्वारा कॉर्पाेरेट सामाजिक जिम्मेदारी के अंतर्गत, पानी की गुणवत्ता और इससे संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण मापदंडों पर अग्रणी पहल की गई है।
- भारत सरकार का लक्ष्य 2022 तक सतही जल आधारित पाइप जलापूर्ति योजनाओं के माध्यम से 90 प्रतिशत ग्रामीण आबादी को एक दीर्घकालिक टिकाऊ समाधान के रूप में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है।
- सरकार जल उपचार तकनीकों को अधिक किफायती और पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए प्रयासरत है।
- पीने के पानी में आर्सेनिक और फ्रलोराइड संदूषण की समस्याओं को रोकने के लिए नीति आयोग ने सामुदायिक जलशोधन संयंत्रें को चालू रऽने की सिफारिश की थी जिसके पश्चात् आर्सेनिक/फ्रलोराइड प्रभावित ग्रामीण बस्तियों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए ‘राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उपमिशन’ शुरू किया।
- गौरतलब है कि भारत सरकार स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए लगातार प्रयास कर रही है फिर भी इसके समक्ष कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं।
चुनौतियाँ-
- भू-जल पर लगातार बढ़ती निर्भरता और इसका निरंतर अत्यधिक दोहन भू-जल स्तर को कम कर रहा है और पेयजल आपूर्ति की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जो एक जटिल चुनौती है।
- जल स्रोतों के सूऽने, भू-जल तालिका में तेजी से कमी, सूऽे की पुनरावृत्ति और विभिन्न राज्यों में बिगड़ते जल प्रबंधन विभिन्न प्रकार की चुनौतियाँ पेश कर रहे हैं।
- बंद पड़े बोर पंपों, जलापूर्ति पाइपलाइनों की मरम्मत समय पर नहीं हो पा रही जिससे क्षेत्र विशेष में पयेजल संकट विद्यमान हो गया है।
- औद्योगीकरण और नगरीकरण के दबाव के कारण पानी के स्रोत नष्ट होते चले गए। इस चिंतनीय पक्ष को लगातार विभिन्न सरकारों द्वारा नजरअंदाज किया गया।
- अधिकांश शहरों और लगभग 19,000 गाँवों के भू-जल में फ्रलोराइड, नाइट्रेट, कीटनाशक आदि स्वीकार्य सीमा से अधिक मौजूद पाए गए। इस लिहाज से पानी की गुणवत्ता चुनौतीपूर्ण है।
- विश्व बैंक और यूनिसेफ द्वारा प्रायोजित अध्ययन दर्शाते हैं कि ग्रामीण भारत में न केवल पेयजल अपर्याप्त है बल्कि देशभर में इसका असंतुलन बहुत व्यापक है।
- जल जनित रोग भारत में स्वास्थ्य संबंधी सबसे बड़ी चुनौती है। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल ऑफ इंडिया-2018 में प्रकाशित आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार भारत में सूचित किए गए करीब एक चौथाई या चार मामलों में से एक संचारी रोगों की वजह से तथा हर पाँच मौतों में से एक जल जनित रोगों के कारण होती है।
- दुनिया के 30 देशों में जल संकट एक बड़ी समस्या बन चुकी है और अगले एक दशक में वैश्विक आबादी के करीब दो-तिहाई हिस्से को जल की अत्यधिक कमी का सामना करना पड़ेगा। वास्तविक अर्थों में भारत में जल संकट एक प्रमुऽ चुनौती बन चुका है।
अमेरिका और क्यूबा का तनाव
- क्यूबा कैरीबियन सागर में स्थित एक द्वीपीय देश है, जिसकी राजधानी और सबसे बड़ा शहर हवाना है।
- 1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस ने क्यूबा की धरती पर कदम रखा और विश्व को एक नये देश से परिचय करवाया। कालांतर में 16वीं, 17वीं और 18वीं शदी में यह स्पेन का उपनिवेश था।
- 1898 में स्पेन ने क्यूबा को अपनी तरफ से आजादी दे दी लेकिन क्यूबा पर संयुक्त राज्य अमेरिका को भी नियंत्रण दे दिया था। 1902 में क्यूबा ने अपने आप को अमेरिका से भी आजाद कर लिया। हालांकि इसके बाद भी अमेरिका का हस्तक्षेप यहाँ बना हुआ था।
- 1940 के दशक में प्रारंभ हुए शीतयुद्ध का प्रभाव क्यूबा पर पड़ा और यहां भी साम्यवाद और लोकतंत्र की लड़ाई प्रारंभ हो गई। वर्ष 1959 में फिदेल कास्त्रे और क्रांतिकारियों के एक समूह ने हवाना की सत्ता पर कब्जा कर लिया और संयुक्त राज्य समर्थित फुलगेन्सियों बतिस्ता की सरकार को उखाड़ फेंका।
- इसके बाद सत्ता पर बैठे फिदेल कास्त्रे ने साम्यवाद का समर्थन किया जिससे अमेरिका के साथ क्यूबा के तनाव बढ़ने लगा। अमेरिका यहां के एक पक्ष को लोकतंत्र के नाम पर सपोर्ट कर रहा था तो दूसरी तरफ USSR फिदेल कास्त्रे के साथ खड़ा था। बढ़ते तनाव के कारण वर्ष 1961 के प्रारंभ में USA ने क्यूबा के साथ अपने सभी राजनयिक संबंध तोड़ लिये।
- अमेरिका ने CIA के माध्यम से फिदेल कास्त्रे की सरकार को उखाड़ फेकने का गुप्त अभियान किया, जिसे Pigs Invasion के नाम से जाना जाता है। यह अमेरिकी प्रयास असफल रहा और इसके बाद तनाव अपने चरम पर पहुँच गये इसके बाद क्यूबा ने सोवियत संघ को गुप्त रूप से अपने द्वीप पर परमाणु मिसाइलों को स्थापित करने की अनुमती दे दी।
- इसके बाद क्यूबा में मिसाइल तैनात कर दी गई, जिससे क्यूबा मिसाइल संकट 1962 में उत्पन्न हो गया। यहाँ USSR ने अमेरिका को रोकने के लिए बढ़चढ़कर क्यूबा की मदद की और हर स्थिति में क्यूबा को USSR के समर्थन का वादा किया।
- अमेरिका ने पहले ही USSR को टारगेट करने के लिए तुर्की में मिसाइल तैनात कर रखा था।
- अगस्त 1962 में अमेरिका को इसके विषय में जानकारी प्राप्त हो गई और तनाव युद्ध में परिणित हो गया। तनाव तीसरे युद्ध की ओर बढ़ रहा था जो न तो अमेरिका के लिए ठीक था और न ही USSR के लिए। फलस्वरूप बताचीत के माध्यम से इसे समाप्त करने का निर्णय लिया गया।
- निकिता ख्रुश्चेव के नेतृत्व में सोवियत संघ ने अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी द्वारा क्यूबा पर आक्रमण न करने तथा तुर्की से अमेरिकी परमाणु मिसाइलों को हटाने की प्रतिज्ञा के बदले क्यूबा से सभी प्रकार की मिसाइलों को वापस लाने पर सहमति व्यक्त की।
- इसके बाद से अगले 50 साल तक भी अमेरिका और क्यूबा के संबंध मतभेद वाले बने रहे और अमेरिका द्वारा क्यूबा पर कई प्रकार के आर्थिक प्रतिबंध बने रहे।
- अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा क्यूबा के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने का प्रयास किया गया और क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्रे ने भी इसमें सहयोग किया। दोनों देशों के बीच के राजनायिक संबंधों को बहाल करने, राजनायिक यात्रएं प्रारंभ करने, व्यापार को बढ़ाने पर सहमति दी गई।
- ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद संबंध फिर से तानवपूर्ण हो गये। ट्रंप प्रशासन ने पर्यटन और अन्य वाणिज्यिक क्षेत्रें पर प्रतिबंधों को फिर से लागू करने के पिछले समझौते को पलट दिया।
- वर्ष 2016 के उत्तरार्द्ध में एक बार तनाव पुनः बढ़ गया। इस समय क्यूबा की राजधानी में तैनात USA के राजनायिकों और अन्य कर्मचारियों ने अजीब सी आवाजें सुनने और शारीरिक संवेदना से जुड़ी बीमारी को महसूस किया। इस आवाज से तीव्र सिरदर्द, मितली आना, चक्कर आना, उल्टी आना, थकान, नींद की समस्या हो रही थी, इससे हवाना सिंड्रोम नाम दिया गया।
- इस तरह के लक्षण माइक्रोवेव हथियार का प्रयोग करने पर दिखते हैं, जो व्यक्ति को शिथिल कर देता है। इससे मृत्यु तो नहीं होती है लेकिन शरीर पर तात्कालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश विभाग ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के कृत्यों हेतु बार-बार सहायता प्रदान करने और आतंकवादियों को सुरक्षित बंदरगाह उपलध कराने का आरोप लगाते हुए क्यूबा को एक आतंकवाद प्रायोजक राज्य के रूप में नामित किया है।
- वर्तमान में इस सूची में चार देश क्यूबा, उत्तर कोरिया, ईरान और सीरिया शामिल हैं। क्यूबा को वर्ष 2015 में इस सूची से हटा दिया गया था, परंतु उसे फिर से इस सूची में शामिल कर लिया गया है।
क्यूबा पर आरोप-
- वेनेजुएला की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप
- क्यूबा के लोगों का दमन
- अंतर्राष्ट्रीय आंतकवाद का समर्थन करना
- USA की न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप
देशों पर प्रतिबंधों के लिए प्रावधान-
- संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा विदेशी सहायता पर प्रतिबंध
- रक्षा निर्यात और ब्रिकी पर प्रतिबंध
- दोहरे उपयोग की वस्तुओं के निर्यात पर कुछ नियंत्रण
- ऐसे देशों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है जो नामित देशों के साथ व्यापार में संलग्न है।